Wednesday 28 November 2012

सुबह की पहली भोर , सामने नज़र आती पर्वत श्रृंखला और उस पर छाए घने बादल,
काले बादलों से सूरज की निकलने की कोशिश, अपनी धरती को एक किरण देने के लिए,
सड़क पर दौड़ती गाड़िया, सब अपनी मंजिल पर जाने को आतुर ,
दोनों तरफ पेड़ो की कतारे, पतझर का मौसम और पेड़ो से पत्ते गायब,
कह रहे हो मानो हमें भी देखो, हम हमेशा से ऐसे ना थे,
हम पर भी बहारे आएँगी, हम पर भी फूल खिलेंगे,
बीच में कहीं कहीं नज़र आते एवरग्रीन ट्रीज, कह रहे है हमें खुद पर कोई घमंड नही,
हम आज भी खड़े है अपने दोस्तों के साथ, मौसम चाहे कोई भी हो .


 

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