Wednesday 28 November 2012

सुबह की पहली भोर , सामने नज़र आती पर्वत श्रृंखला और उस पर छाए घने बादल,
काले बादलों से सूरज की निकलने की कोशिश, अपनी धरती को एक किरण देने के लिए,
सड़क पर दौड़ती गाड़िया, सब अपनी मंजिल पर जाने को आतुर ,
दोनों तरफ पेड़ो की कतारे, पतझर का मौसम और पेड़ो से पत्ते गायब,
कह रहे हो मानो हमें भी देखो, हम हमेशा से ऐसे ना थे,
हम पर भी बहारे आएँगी, हम पर भी फूल खिलेंगे,
बीच में कहीं कहीं नज़र आते एवरग्रीन ट्रीज, कह रहे है हमें खुद पर कोई घमंड नही,
हम आज भी खड़े है अपने दोस्तों के साथ, मौसम चाहे कोई भी हो .


 

Thursday 22 November 2012


यादों के समुंदर मे जब भी तुफान आता है, याद आता है मुझे वो गुजरा ज़माना ,
वो बारिश की बूंदे और वो मिटटी की सोंधी सुगंध ,
वो त्योहारों का मौसम और गली -मोहल्ले में हंगामा,
वो बाज़ार की हलचल और वो जब तब सरकारी छुट्टी,
वो चंदा इकठ्ठा करना और फिर मोहल्ले का वो रावण,
यादो के समुंदर में जब भी तूफान आता है , याद आता है मुझे वो गुजरा ज़माना,
वो होली की रंगत और रंग लगाने का एक खूबसूरत बहाना,
वो हर पल के फैशन की चिंता और पड़ोसन के कपड़ो पर नज़र,
वो रिक्शा वाले से एक रूपये की झिक - झिक और हर बार वही बह्स ...
 दोस्तों का किसी भी वक़्त आ जाना और डिनर करके ही जाना ...
यादो के समुंदर में जब भी तूफान आता है, याद आता है मुझे वो गुज़रा ज़माना ...